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वह शाम आई, जब रेस्तरां की चायनीज दिशा बनी हुई थी। बौछार बौछार बरस रही थी बारिश, जैसे कि मेरे भावनाओं में भी बरसात हो रही थी। मैंने अपनी दृष्टि रेस्तरां के बड़े कमरे में स्थानित एक लंबे मेज की ओर बढ़ाई, जहां हर कोने में आती बूंदें हमारे बीच की ताजगी को बढ़ा रही थीं।
वह आई, एक खुली हंसी और एक मुस्कान के साथ। उसकी आँखों में वह खास चमक थी जो किसी के व्यक्तित्व को और भी रोचक बना देती है। हमारी मुलाकात के लिए मुख मिला, और मैंने एक सजीव नमस्ते से उसका स्वागत किया।
"नमस्कार! कैसी हो तुम?" मैंने उससे पूछा, जवाब की प्रतीक्षा में खड़ा होकर।
उसने हंसते हुए उत्तर दिया, "मैं बहुत अच्छी हूं, शुक्रिया! और तुम कैसे हो?"
"मैं भी बहुत अच्छा हूं," मैंने कहा और आगे बढ़ते हुए कहा, "तुम्हारा यहां आना कैसा लगा?"
उसने बालों को हवा में फीलाते हुए कहा, "बहुत अच्छा लगा! यहां की वातावरण बहुत ही शांतिपूर्ण है।"
हमने मेनू में से अपनी पसंदीदा वस्तुओं का चयन किया, और बीच-बीच में तबादला हो रहा था। मुझे मजा आ रहा था क्योंकि न ही हमने कभी मुलाकात की थी और न ही हमने कभी एक-दूसरे से बातें की थीं, लेकिन हम दोनों को अच्छी तरह से समझाने का एक अद्वितीय अवसर मिला था।
इस मिलनसर माहौल में हमने समझाया और बातचीत की, जो न क
ेवल हंसी भरी थी, बल्कि हमारी आत्माओं को भी मिलाने का एहसास करा रही थी। रेस्तरां की आत्मा और हमारी मिलनसरता के बीच, हमने एक नए आरंभ का संकेत पाया था।
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आशा है कि यह आपके उदाहरण के लिए उपयुक्त है।